श्री बालाजी मंदिर एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है| यहां लगभग हजारों वर्ष पूर्व बालाजी अपने बाल रूप में स्वयं प्रकट हुए थे| यह श्री मेहंदीपुर बालाजी के नाम से प्रसिद्ध एक बहुत ही सिद्ध और चमत्कारिक तीर्थस्थल है|
और अधिक जानेंश्री बालाजी का यह विश्व प्रसिद्द मंदिर लगभग सैकड़ों वर्ष से घाटा मेहंदीपुर, दौसा राजस्थान पर स्थित है| प्राचीनकाल में यहां घना जंगल हुआ करता था जिसमें अनेक जंगली जानवर रहा करते थे| यह विश्व प्रसिद्द मंदिर घाटा मेहंदीपुर भारत के राजस्थान राज्य के दौसा और गंगापुर (पुर्व में करौली) जिलों के बीच स्थित है | यह एक बहुत ही चमत्कारिक तीर्थस्थल है जो कि दो पहाड़ों के बीच स्थित हैं एवं दुनिया के उन कुछ रहस्यमयी मंदिरों में शामिल है जिनकी कृपा और लीलाओं को देखकर विज्ञान / वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी अचंभित हैं और काफी अध्ययन व शोध करने के बाद भी वह इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं |
श्री बालाजी की कृपा से आज यह स्थान श्री मेहंदीपुर बालाजी और घाटा मेहंदीपुर बालाजी धाम के नाम से विश्व प्रसिद्द है और दैवीय शक्तियों से ऊर्जित एक सिद्ध स्थान है |
श्री बालाजी महाराज लगभग सैकड़ों वर्ष पूर्व अपने बाल रूप में दो छोटी पहाड़ियों के बीच एक दैवीय लीला से स्वयं प्रकट हुए थे | श्री बालाजी महाराज जी के प्राकट्य के बाद से ही महंत परिवार की लगभग पिछली 15 पीढ़ियों ने उनकी समर्पित सेवा की परम्परा को निरंतर कायम रखा है| श्री बालाजी के प्राकट्य की एतिहासिक पृष्ठभूमि भी महंत जी के पूर्वजों से ही जुड़ी हुई है |
श्री बालाजी महाराज जी के प्राकट्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह है कि श्री महंत जी के पूर्वज गोसाई जी महाराज को एक अलौकिक स्वप्न दिखाई दिया और स्वप्न की अवस्था में वह उठ कर चल दिए| उन्हें यह पता नही था कि वह कहां जा रहे हैं। स्वप्न की अवस्था में ही उन्होंने एक अनोखी लीला देखी कि एक ऒर से हजारों दीपक जलते चले आ रहे हैं। उसी तरफ से ही हाथी घोड़ो की आवाजें भी आ रही हैं। एक बहुत बड़ी सेना चली आ रही है | उस सेना ने श्री बालाजी महाराज जी, श्री भैरव बाबा, श्री प्रेतराज सरकार को प्रणाम किया और जिस रास्ते से वह सेना आयी उसी रास्ते से ही लौट गई।
गोसाई जी महाराज वहीं पर खड़े-खड़े यह सब देखते रहे। उन्हें कुछ डर सा लगा और फिर वह अपने गांव की तरफ चल दिये| घर जाकर उन्होंने प्रयास किया कि उन्हें नींद आ जाए परन्तु उन्हे नींद नही आई और बार-बार उसी स्वप्न के बारे में विचार आने लगे। फिर जैसे ही उन्हें नींद आई, उन्हें वही तीन मूर्तियां और एक विशाल मंदिर दिखाई दिया| उनके कानों में वही आवाज आने लगी जो उन्होंने इसके पहले स्वप्न में सुनी थी और उन्हें ऐसा आभास हुआ की कोई उनसे कह रहा है कि बेटा उठो और मेरे सेवा कार्य व मेरी पूजा का भार ग्रहण करो। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा और कलयुग में लोक कल्याण के लिए अपनी शक्तियों से कृपा करूंगा। ऐसा कौन कह रहा था रात में उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया।
ऐसा कई बार होने पार भी गोसाई जी महाराज ने इस बात पर ध्यान नही दिया तब अंत में श्री बालाजी महाराज ने स्वयं दर्शन दिए और गोसाई जी महाराज से कहा कि बेटा आप मेरी नियमित सेवा-पूजा करो |
प्रभु के साक्षात दर्शन पाकर गोसाई जी महाराज अगले ही दिन स्वप्न में दिखे स्थान व मूर्तियों के पास पहुँच गए, जो कि दो पहाड़ियों के बीच स्थित था | वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि चारों ओर से घंटे-घड़ियाल और नगाड़ों की आवाज आ रही है लेकिन उन्हें कुछ दिखाई नही दिया| इसके बाद गोसाई जी महाराज नीचे आए, उन्होंने आस-पास के लोगों को इकट्ठा किया और अपने सपने के बारे में बताया| गोसाई जी की बात सुनकर लोगों ने भोग-प्रसाद की व्यवस्था करा दी|
इससे प्रसन्न होकर श्री बालाजी महाराज ने उन लोगों को कई चमत्कार दिखाए। श्री बालाजी महाराज का विग्रह जहां प्रकट हुआ था, लोगों ने वहां जाकर उन्हे देखकर मन में विचार किया कि क्या वह कोई कला है। तब लोगों के ऐसा विचार करने से स्वयं प्रकट हुआ श्री बालाजी महाराज का विग्रह अदृश्य हो गया| तब लोगों को समझ आया की यह तो साक्षात् बालाजी महाराज का ही रूप है, फिर लोगों ने श्रद्धा पूर्वक श्री बालाजी महाराज से क्षमा याचना की तब वह विग्रह फिर से लोगों को दिखाई देने लगी।
इसके बाद गोसाई जी नियमित रूप से श्री बालाजी महाराज की पूजा-अर्चना, सेवा करने लगे और श्री बालाजी महाराज श्रद्धालुओं व भक्तों पर अपनी कृपा बरसाने लगे| इस समस्त घटनाक्रम और साक्षात श्री बालाजी महाराज के दर्शन से स्वयं को धन्य हुआ पाकर गोसाई जी ने प्रार्थना की कि “हे श्री बालाजी महाराज, मेरी कर्मबद्ध इच्छा है कि आगे आपकी पूजा-अर्चना, भोग-प्रसाद, और सेवा का सम्पूर्ण दायित्व मेरे ही वंश, मेरी आगे आने वाली पीढ़ियाँ ही निरंतर करें। गोसाई जी महाराज और उनके वंश पर श्री बालाजी की कृपा हुई और गोसाई जी के बाद से निरंतर उनका परिवार पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ श्री बालाजी महाराज की सतत सेवा में लगा हुआ है।
श्री मेहंदीपुर बालाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए आप अपनी सुविधानुसार नीचे बताये गए मार्गों में से कोई भी मार्ग चुन सकते हैं:
सड़क मार्ग:मेहंदीपुर बालाजी मंदिर आसपास के शहरों और कस्बों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन की बसें और निजी बसें राजस्थान और पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों से मंदिर (मेहंदीपुर) तक नियमित रूप से चलती हैं। आप मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी या निजी वाहन से भी सुगमता से आ सकते हैं। मंदिर जयपुर-आगरा हाइवे NH 11 पर स्थित है, जो जयपुर से लगभग 103 किलोमीटर, दिल्ली से 265 किलोमीटर और आगरा से 221 किलोमीटर की दूरी पर है।
ट्रेन:
निकटतम रेलवे स्टेशन बांदीकुई जंक्शन है, जो मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। बांदीकुई जंक्शन भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, जयपुर, आगरा और कई अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप रेलवे स्टेशन पहुंच कर टैक्सी या स्थानीय बस ले सकते हैं।
हवाई जहाज:मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (JAI) है, जो लगभग 115 किलोमीटर दूर स्थित है। हवाई अड्डे से मंदिर आने के लिए आप टैक्सी या बस ले सकते हैं। श्रद्धालु अपनी सुविधानुसार दिल्ली एअरपोर्ट से भी सीधे मंदिर आते हैं |
भारतीय सनातन परंपरा और वैदिक संस्कृति में “गर्भगृह” मंदिर स्थापत्य कला से सम्बद्ध सबसे महत्वपूर्ण शब्द है। गर्भगृह मंदिर का वह भाग है जिसमें देवमूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। इसके निर्माण का एक पूरा शास्त्रोक्त विधान है और भारत के सभी मंदिर इसी के आधार पर बनाये जाते हैं|
इस दृष्टी से श्री मेहंदीपुर बालाजी का गर्भगृह बहुत ही विशेष और चमत्कारी है क्योंकि जिनके नाम और ध्यान से ही समस्त प्रकार की बाधाएं, कष्ट व वास्तु दोष दूर हो जाते हैं ऐसे श्री बालाजी महाराज, लोक कल्याण के लिए दो पहाड़ियों के बीच स्वयं प्रकट हुए और उनके बाल रूप के दर्शन का लाभ भक्त ले रहे हैं|
श्री बालाजी महाराज का गर्भगृह दिखने में बहुत ही आकर्षक है| बालाजी महाराज की दिव्य शक्तियों से ऊर्जित है और भक्तों को यहां बहुत सकारात्मकता व सुरक्षा महसूस होती है| लोगों के ज्ञात-अज्ञात सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने और उनकी मनोकामनाओं को पूरा करने की दैवीय शक्तियों की कृपा के कारण यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इसीलिए सैकड़ों वर्षों से पीढ़ी- दर – पीढ़ी परिवारों में श्री बालाजी महाराज की अनन्य आस्था बनी हुई है|
पिछले कई वर्षों से श्री मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है| भक्तों और श्रद्धालुओं की सुविधा और उनके द्वारा श्री बालाजी दरबार के सुगम दर्शन को ध्यान में रखते हुए मंदिर ट्रस्ट निरंतर मंदिर प्रांगण को विकसित करता रहा है|
१००८ श्री नरेश पुरी जी महाराज के महंत पद पर आसीन होने के बाद से मंदिर प्रांगण और मंदिर के आस-पास के क्षेत्र का चहुमुखी विकास व विस्तार कार्य शुरू हुआ है| भक्तों की बढ़ती संख्या, उनकी सुविधा व सुरक्षा और सुगम दर्शन के लिए मंदिर में किये जा रहे कुछ प्रमुख विकास कार्यों में शामिल हैं:
सुबह की आरती | 6.00 बजे से 6.40 तक |
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प्रात: कालीन दर्शन | 7.00 बजे से 11.00 बजे तक |
श्री बालाजी को राजभोग | 11.30 AM से 12.00 PM तक |
दोपहर के दर्शन | 12.00 बजे से 6.50 तक(नोट: सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार को श्री बालाजी के विशेष श्रृंगार (चोला चढाने) हेतु सांय 4:00 बजे से 6:00 बजे तक दर्शन बंद रहते हैं|) |
शाम की आरती | 6.50 से 7.30 तक |
मंदिर के कपाट बंद होने का समय | रात्रि 9.00 बजे |
* विशेष परिस्थितयो और समय समय पर मंदिर प्रबंधन के आदेशानुसार इस समय सूची में बदलाव कर सकता हैं जिसकी सुचना मंदिर परिसर में माइक द्वारा दी जाती हैं |
अंजनी के लाल, पवनपुत्र, और प्रभु श्री राम के परम भक्त श्री बालाजी महाराज सैकड़ों वर्ष पूर्व अपने बाल रूप में श्री मेहंदीपुर बालाजी में स्थित दो छोटी पहाड़ियों के बीच में स्वयं प्रकट हुए थे।
श्री बालाजी महाराज की प्रतिमा के चरणों में एक कुंड है, जिसका पवित्र जल कभी खत्म नहीं होता। इस प्रतिमा में एक रहस्य है कि श्री बालाजी महाराज के हृदय के पास एक बारिक जलधारा बूंद-बूंद करके बहती है। उसी पवित्र जल को भक्तों को वितरित किया जाता है, जिससे कस्ट दूर होते हैं और लाभ प्राप्त होता है। श्री बालाजी को चोला चढ़ जाने पर भी यह जलधारा बंद नहीं होती और निरंतर रूप से बहती रहती है।
परम श्रद्धेय महंत डा.नरेश पुरी जी ने गुरु दीक्षा लेकर अपने परम पूज्य गुरुदेव के साथ लगभग ४२ वर्षों से श्री बालाजी महाराज जी की सेवा और अन्य जनकल्याण के कार्यों में पूरे सेवा भाव और समर्पण के साथ निरंतर कार्य कर रहे हैं|
जनकल्याण को समर्पित परम श्रद्धेय श्री श्री 1008 डा नरेशपुरी जी महाराज को श्री बालाजी महाराज ट्रस्ट अध्यक्ष का कार्यभार 21 अगस्त 2021 को संभाला | श्री बालाजी महाराज के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से इन दो वर्षो में महाराज श्री द्वारा श्री राधाकृष्ण मंदिर स्थापना एवं विशाल एवं भव्य भागवत कथा, सीताराम मंदिर का भव्य नवीनीकरण, शैक्षिक विस्तार के क्रम में नि :शुल्क स्कूल, कॉलेज के अतरिक्त पीजीडीसीए कॉलेज एवम इंग्लिश मीडियम स्कूल स्थापना, संस्कृत नि:शुल्क शिक्षा के साथ 1000 रुपए प्रतिमाह प्रोत्साहन, वैदिक अनुष्ठान, विशाल एवम भव्य भागवत कथा, हरिद्वार में पार्थिवेश्वर पूजा, राष्ट्रीय संत सम्मेलन, मंदिर में भक्तो को दोपहर भोजन पैकेट वितरण, साफ सफाई व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन, मंदिर में डिजिटल पेमेंट व्यवस्था, मंदिर परिसर का वातानुकूलन, मंदिर की आवश्यक सुविधाओं और सुरक्षा मापदंडों में वृद्धि, बेजुबान जानवरो के लिए दौसा पशु चिकत्सालय में प्रयोगशाला उपकरण व्यवस्था, दौसा हॉस्पिटल में ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर जैसे परमार्थ कार्य आपकी सेवा परमो धर्म के अद्वितीय भाव को दर्शाते हैं। वर्तमान में ट्रस्ट द्वारा समाधिस्थल, स्कूल एवं पीजी कॉलेज और हॉस्पिटल का नवीनीकरण कार्य भी कराया जा रहा हैं| कर्मचारियों के आवास निर्माण का कार्य भी प्रगति पर हैं| श्री बालाजी महाराज के भवन का एलिवेशन कार्य भी प्रगति पर हैं | इससे न केवल बालाजी धाम की जय जयकार हुई है, अपितु यह कार्य संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
ब्रम्हलीन महंत १००८ श्री गणेश पुरी जी एक तपस्वी, सिद्ध पुरुष एवं एक महान संत थे| पहाड़ी अंचल तथा जंगली जानवरों से भरे इस वन्य क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में प्राचीन समय से ही महंत परिवार की पीढ़ियों द्वारा लगातार पूजा अर्चना होती आ रही थी। लेकिन श्री गणेश पुरी जी ने अपनी दूरदर्शितापूर्ण सोच से आने वाले समय की आवश्यकताओं और श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मंदिर के नव-निर्माण की नींव रखी। तब से ही समय समय पर श्री बालाजी मंदिर के विकास व विस्तार का कार्य किया जाता रहा है।
महाराज जी का भक्त वात्सल्य भी अद्भुत था| जब साधन-सुविधाओं के बारे में कोई भी कुछ सोच विचार या अपेक्षा नहीं करता था तब भी उन्होंने श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उनके आने जाने के मार्ग और सार्वजनिक व सामाजिक सुविधाओं के विकास पर बहुत बल दिया और उनका निर्माण शुरू करवाया।
महाराज जी ने मंदिर के सहयोग से एक संस्कृत पाठशाला प्रारम्भ करवाई, जिसके माध्यम से संस्कृत के अनेक वेदज्ञ विद्वान तैयार हुए और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सेवायें प्रदान कर रहे हैं। महाराज जी का यह कदम मील का पत्थर साबित हुआ और आज ट्रस्ट के द्वारा अनेक शिक्षा संस्थाएं स्थापित की जा चुकी हैं।
ऐसे अनेक सामाजी व धार्मिक कार्यों साथ ही श्री गणेश पुरी जी महाराज बेजुबान जानवरों का भी स्वयं बहुत ध्यान रखते थे| उन्होंने इसे सेवा कार्य को मंदिर व्यवस्था का हिस्सा ही बना दिया| इसके लिए उन्होंने जीव-जंतुओं के भोजन की व्यवस्था, चीटी – चुग्गा, मोर- चुग्गा आदि की व्यवस्था की |
ब्रम्हलीन महंत १००८ श्री गणेश पुरी जी महाराज ने सन 1965 में मंदिर के कार्यभार तथा प्रबंधन की व्यवस्था का दायित्व महंत १००८ श्री किशोरपुरी जी को सौंप दिया था।
ब्रम्हलीन महंत १००८ श्री गणेश पुरी जी महाराज ने सन 1965 में मंदिर के कार्यभार तथा प्रबंधन की व्यवस्था का दायित्व महंत १००८ श्री किशोर पुरी जी को सौंप दिया था। किशोर पुरी जी महाराज धर्म, दर्शन और अध्यात्म के प्रकांड पंडित थे तथा वेद एवं पुराण के अच्छे ज्ञाता एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
किशोर पुरी जी महाराज का मानना था, कि सभी को अपनी बेटियों को अवश्य ही पढ़ाना चाहिए। महाराज जी ने नारी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में बालिकाओं के लिए स्कूल व कॉलेज स्थापित किये| साथ ही इन प्रयासों से बालिकाओं व उनके परिवारों को जोड़ने के लिए छात्रावास, भोजन, गणवेश एवं पुस्तकों आदि की पूर्णतया निशुल्क व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई|
महाराज जी की इस व्यापक सोच और समग्र प्रयास के बहुत अच्छे परिणाम आये| इससे इस क्षेत्र की बालिकाओं को आगे बढ़ने और अपनी योग्यताओं को विकसित करने और आगे बढ़ने का सम्पूर्ण अवसर व माहौल मिला|
महाराज जी का मानव कल्याण, विशेषकर बालिका तथा महिलाओं के कल्याण, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा और सांस्कृतिक विकास में विशेष योगदान रहा है।
पूज्य महंत श्री किशोर पुरी जी महाराज ने अपने जीवन काल में ही शिष्य श्री नरेश पुरी जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया कर दिया था।
किसी भी देश की प्रगति में साक्षरता प्रतिशत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि देश की प्रगति का अनुपात और शिक्षित लोगों का अनुपात हमेशा परस्पर निर्भर रहता है। भारत के पिछड़ेपन का एक मुख्य कारण यह है कि शिक्षा पर कुछ लोगों ने अपना आधिपत्य जमा रखा है। गांवों में शिक्षा के दीपक की रोशनी अभी भी धुंधली है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके साथ ही शिक्षा में संस्कृत जैसी उत्कृष्ट भाषा और कम्प्यूटर शिक्षा का विशेष स्थान होना चाहिए।
ट्रस्ट द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
गांवों में बीमारियों और दुर्घटनाओं की स्थिति में समय पर उचित चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। इतना ही नहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में कई बच्चे अकाल मृत्यु का शिकार भी हो जाते हैं।
ट्रस्ट द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत सारे कार्य कर रहे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं –
अध्यात्म का संबंध जीवन के आंतरिक पक्ष से है और धर्म का संबंध जीवन के बाहरी पक्ष से है। धर्म हमारे आचरण का आधार है तो अध्यात्म हमारे जीवन का प्रकाश है। धर्म का पालन करके हम जीवन को बहुत ही खूबसूरती से जी सकते हैं, तो अध्यात्म का पालन करके हम भगवान को भी प्राप्त कर सकते हैं और जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और आवागमन के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।
ट्रस्ट द्वारा इस क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य किये जा रहे हैं:
सामाजिक कार्य परोपकारी और लोकतांत्रिक आदर्शों से विकसित हुआ है और इसके नैतिक मूल्य सभी व्यक्तियों की समानता, मूल्य और गरिमा के सम्मान पर आधारित हैं। महंत महाराज द्वारा समाज में फैली बाधाओं, असमानता एवं अन्याय को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को व्यक्तित्व विकसित करने, उनके जीवन को समृद्ध बनाने और बुराई को रोकने में मदद करना है।
ट्रस्ट समाज कल्याण के क्षेत्र में भी कार्य कर रहा है, जो इस प्रकार हैं:
भारत अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व अच्छे संस्कार, नैतिकता, विचार, धार्मिक अनुष्ठान और नैतिक मूल्य आदि हैं। इसे सुदृढ़ एवं विकसित करने के लिए समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं तथा प्रतिभावान लोगों को सम्मानित किया जाता है।
हम खेल को लोगों द्वारा आकस्मिक या संगठित भागीदारी के माध्यम से किसी भी प्रतिस्पर्धी खेल गतिविधि के रूप में कह सकते हैं। यह किसी की शारीरिक क्षमताओं और कौशल को सुधारने और बनाए रखने में मदद करता है।
इस क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य किये जा रहे हैं:
विश्व के वर्तमान परिवेश की सबसे विकट परिस्थिति में पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक पर्यावरण खतरे में पड़ गया है। पृथ्वी को इस संकट से बचाने और स्थानीय स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण की रक्षा करने की बहुत आवश्यकता है।
अतः महंत श्री नरेश पुरी महाराज द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अनेक कार्य किये जा रहे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: